ज्वालाजी माता मंदिर
ज्वालाजी माता मंदिर
माता ज्वाला देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों मे से एक है यह धूमा देवी का स्थान बताया जाता है। चिंतपूर्णी, नैना देवी, शाकम्भरी शक्तिपीठ, विंध्यवासिनी शक्तिपीठ और वैष्णो देवी की ही भांति यह एक सिद्ध स्थान है । यहाँ पर भगवती सती की महाजिह्वा भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से कट कर गिरी थी । मंदिर मे भगवती के दर्शन नौ ज्योति रूपों मे होते हैं जिनके नाम क्रमशः महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी है । उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान चौथा दर्शन माँ ज्वाला देवी का ही होता है । आदि शंकराचार्य लिखित अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र के अन्तर्गत है । स्तोत्र पर ज्वाला देवी को वैष्णवी बोला है ।
ज्वाला जी न केवल ज्वाला मुखी, कांगड़ा या हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए बल्कि पूरे विश्व के लोगों के लिए एक महान विरासत केंद्र है। हर साल मार्च से अप्रैल और सितंबर से अक्टूबर के दौरान नवरात्र उत्सव के दौरान रंग-बिरंगे मेले आयोजित किए जाते हैं।
पौराणिक कथा
प्राचीन किंवदंतियों में ऐसे समय की बात आती है जब राक्षस हिमालय के पहाड़ों पर प्रभुत्व जमाते थे और देवताओं को परेशान करते थे। भगवान विष्णु के नेतृत्व में, देवताओं ने उन्हें नष्ट करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित किया और विशाल लपटें जमीन से उठ गईं। उस आग से एक छोटी बच्ची ने जन्म लिया। उसे आदिशक्ति-प्रथम ‘शक्ति’ माना जाता है।
सती के रूप में जानी जाने वाली, वह प्रजापति दक्ष के घर में पली-बढ़ी और बाद में, भगवान शिव की पत्नी बन गई। एक बार उसके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया सती को यह स्वीकार ना होने के कारण, उसने खुद को हवन कुंड मे भस्म कर डाला। जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो उनके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने सती के शरीर को पकड़कर तीनों लोकों मे भ्रमण करना शुरू किया। अन्य देवता शिव के क्रोध के आगे कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र के वार से खंडित कर दिया। जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर इक्यावन पवित्र ‘शक्तिपीठ’ अस्तित्व में आए। “सती की जीभ ज्वालाजी पर गिरी थी और देवी छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई।
ऐसा कहा जाता है कि सदियों पहले, एक चरवाहे ने पाया कि उसकी एक गाय हमेशा दूध के बिना रहती थी। उसने कारण जानने के लिए गाय का पीछा किया। उसने जंगल से एक लड़की को बाहर आते देखा जिसने गाय का दूध पिया और फिर प्रकाश की चमक में गायब हो गई। चरवाहा राजा के पास गया और उसे कहानी सुनाई। राजा को यह कथा ज्ञात थी कि सती की जीभ इसी क्षेत्र में गिरी थी। राजा ने उस पवित्र स्थान को खोजने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर, कुछ साल बाद, चरवाहा राजा के पास यह बताने गया कि उसने पहाड़ों में एक ज्वाला जलती देखी है। राजा को वह स्थान मिला और उसने पवित्र ज्योति के दर्शन किये। उन्होंने वहां एक मंदिर बनवाया और पुजारियों को नियमित पूजा-अर्चना में संलग्न रहने की व्यवस्था की। ऐसा माना जाता है कि बाद में पांडव आये और उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। लोकगीत “पंजन पंजन पांडवन तेरा भवन बनाया” इसी विश्वास का प्रमाण है। राजा भूमि चंद ने सबसे पहले मंदिर का निर्माण कराया था।
ज्वालामुखी युगों से एक तीर्थस्थल है। मुगल बादशाह अकबर ने एक बार आग की लपटों को एक लोहे की चादर से ढँकने का प्रयास किया और यहाँ तक कि उन्हें पानी से भी बुझाना चाहा। लेकिन ज्वाला की लपटों ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। तब अकबर ने तीर्थस्थल पर एक स्वर्ण छत्र भेंट किया और क्षमा याचना की। हालाँकि, देवी की सामने अभिमान भरे वचन बोलने के कारण देवी ने सोने के छत्र को एक विचित्र धातु में तब्दील कर दिया, जो अभी भी अज्ञात है। इस घटना के बाद देवी में उनका विश्वास और अधिक मजबूत हुआ। आध्यात्मिक शांति के लिए हजारों तीर्थयात्री साल भर तीर्थ यात्रा पर जाते हैं।
दर्शन
ध्यानू-भक्त की कथा
जिन दिनों भारत में मुग़ल सम्राट अकबर का शासन था, उन्ही दिनों की यह घटना है। नदौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक एक हज़ार यात्रियों सहित माता के दर्शनों के लिये जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानू-भक्त को पेश किया।
अकबर ने पूछा, “तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो ?”
ध्यानू-भक्त ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “मैं माँ ज्वाला – माई के दर्शन के लिये जा रहा हूँ। मेरे साथ जो लोग है, वे भी माता के भक्त है और यात्रा पर जा रहे हैं। “
अकबर ने ये सुनकर कहा, “ये ज्वाला माई कौन हैं? और वहां जाने से क्या होगा?”
ध्यानू-भक्त ने उत्तर दिया, “महाराज! ज्वाला माई संसार की रचना एवं पालन करने वाली माता हैं। वे भगतों की सच्चे ह्रदय से की प्राथना स्वीकार करती हैं तथा उनकी सब मनोकामनाए पूरी करती हैं। उनका प्रताप ऐसा हैं उनके स्थान पर बिना तेल-बती के ज्योति जलती रहती हैं। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन करने जाते हैं। “
अकबर बोले, “तुम्हारी ज्वाला माई इतनी ताकतवर है, इसका यकीं हमें किस तरह आएगा, आखिर तुम माता के भक्त हो,अगर कोई करिश्मा दिखाओ तो हम भी मान लेंगे। “
ध्यानू ने नम्रता से उत्तर दिया, श्रीमान ! मैं तो माता का एक तुच्छ सेवक हु, मैं भला क्या चमत्कार दिखा सकता हूँ?
अकबर ने कहा, “अगर तुम्हारी बंदगी पाक एवं सच्ची है तो देवी माता जरूर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम्हारे जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीं के काबिल नहीं है, या तुम्हारी इबादत ही झूठी है। इम्तिहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग किये देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दुबारा ज़िंदा करवा लेना। “
इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गयी। ध्यानू -भक्त ने कोई उपाय न देकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सर व् धड़ को सुरक्षित रखने की प्राथना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली। यात्रा करने की अनुमति भी मिल गयी।
बादशाह से विदा लेकर ध्यानू भक्त अपने साथियो सहित माता के दरबार में जा उपस्थित हुआ। स्नान – पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रातः काल आरती के समय हाथ जोड़कर ध्यानू ने प्रार्थना कि, “हे मातेश्वरी ! आप तो अन्तर्यामी है, बादशाह मेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को, अपनी कृपा व् शक्ति से जीवित कर देना, चमत्कार प्रकट करना, अपने सेवक को कृतार्थ करना। यदि आप मेरी प्राथना सवीकार नहीं करेगी तो मैं भी अपना सर काटकर आपके चरणो में अर्पित कर दूंगा, क्योकि लज्जित होकर जीने से मर जाना अधिक अच्छा है। यह मेरी प्रतिज्ञा है। कृप्या आप उत्तर दें।”
कुछ समय तक मौन रहा। कोई उत्तर न मिला।
इसके पश्चात भक्त ने तलवार से अपना शीश काट कर देवी को भेंट कर दिया।
उसी समय साक्षात ज्वाला माई प्रकट हुई और ध्यानू – भक्त का सर धड़ से जुड़ गया, भक्त जीवित हो उठा। माता ने भक्त से कहा, “दिल्ली में घोड़े का सर भी धड़ से जुड़ गया है। चिंता छोड़कर कर दिल्ली पहुँचो। लज्जित होने का कारण निवारण हो गया। और जो कुछ इच्छा हो वर माँगो।
ध्यानू – भक्त ने माता के चरणों में शीश झुकाकर प्रणाम कर निवेदन किया, “हे जगदम्बे ! आप सर्व शक्तिमान है, हम मनुष्य अज्ञानी है, भक्ति की विधि भी नहीं जानते। फिर भी विनती करता हूँ की जगदमाता ! आप अपने भक्तो की इतनी कठिन परीक्षा न लिया करें। प्रत्येक संसारी -भक्त आपको शीश भेंट नही दे सकता। कृपा करके, हे मातेश्वरी ! किसी साधारण भेंट से ही अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण किया करो। “
“तथास्तु ! अब से मैं शीश के स्थान पर केवल नारियल की भेंट व् सच्चे ह्रदय से की गयी प्रार्थना द्वारा मनोकामना पूर्ण करुँगी।” यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गयी।
इधर तो यह घटना घटी, उधर दिल्ली में जब मृत घोड़े का सर व् धड़, माता की कृपा से अपने आप जुड़ गये और वो जीवित हो उठा तो सब दरबारियों सहित बादशाह अकबर आश्चर्य में डूब गये। बादशाह ने अपने सिपाहियों को ज्वाला जी भेजा। सिपाहियों ने वापस आकर अकबर को सुचना दी, “की वहां ज़मीं से आग की लपटे निकला रही है, शायद उन्ही की ताकत से यह करिश्मा हुआ है। अगर आप हुक्म दे तो इन्हे बंद करवा दे। इस तरह हिन्दुओं की इबादत की जगह ही खत्म हो जाएगी।
अकबर ने स्वीकृति दे दी। परन्तु कुछ इतिहासकारो का मानना है की अकबर की स्वीकृति के बिना ही शाही सिपाहियों ने ऐसा किया था। कहा जाता है की शाही सिपाहियों ने सवर्प्रथम माता की पवित्र ज्योति की ऊपर लोहे की मोटे-मोटे तवे रखवा दिए। परन्तु दिव्य – ज्योति तवे फाड़कर ऊपर निकल आई। इसके पश्चात एक नहर का बहाव उस और मोड़ दिया गया, जिससे नहर का पानी निरंतर ज्योति के ऊपर गिरता रहे। फिर भी ज्योतियो का जलना बंद न हुआ। शाही सिपाहियों ने अकबर को सुचना दी। जोतों का जलना बंद नहीं हो सकता, हमारी सारी कोशिशे नाकाम हो गयी। आप जो मुनासिब हो, वह करें।
यह समाचार पाकर बादशाह अकबर ने दरबार के विद्वानों से परामर्श किया। विद्वानों ने विचार करके कहा की आप सवयं जा कर दैवी-चमत्कार देखें तथा नियमानुसार भेंट आदि चढ़ाकर दैवी माता को प्रसन करें।
अकबर ने विद्वानों की बात मान ली। सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र तैयार हुआ। फिर वह छत्र अपने कंधे पर रखकर नंगे पेरों ज्वाला जी पहुंचे। और दिव्य ज्योति के दर्शन किये, मस्तक श्रद्धा से झुक गया, अपने मन में पश्चाताप होने लगा। और कहने लगा। हे माँ, मैं आपको सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र भेंट सबरूप चढ़ा रहा हूँ। आज तक किसी राजा ने आपको सवा मन पक्का सोने का भव्य छत्र भेंट नही किया होगा। कृप्या मेरी भेंट स्वीकार कीजिए। अकबर के घमंड भरे शब्द बोलते ही छत्र पर एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और फिर अकबर से बह छत्र नीचे गिर गया। और जैसे ही वह छत्र गिरा वो सोने का न रहा, किसी विचित्र धातु का बन गया, जो न लोहा था, न पीतल, न ताम्बा न और कोई धातु।
अर्थार्त दैवी ने भेंट अस्वीकार कर दी।
इस चमत्कार को देखकर अकबर ने अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए माता से क्षमा की भीख मांगी और अनेक प्रकार से पूजा करके दिल्ली वापिस लौटा। आते ही सिपाहियों के लिए सभी भक्तों से प्रेम-पूर्वक व्यव्हार करने का आदेश दिया।
अकबर बादशाह द्वारा चढ़ाया गया खंडित छत्र ज्वाला माता के दरबार में आज भी पड़ा देखा जा सकता है जो देखने से सोने का प्रतीत होता है भार भी सोने का ही है पर किसी भी धातु का नही हैं।
!! जय माता दी !!
मंदिर और आरती का समय
देश के सभी मंदिरों में आरती एक आवश्यक अनुष्ठान है। देवी की पूजा में पुजारियों द्वारा पांच आरती की जाती है। एक आरती सुबह के समय की जाती है, एक सूर्योदय के समय, एक दोपहर के समय, एक शाम के समय और एक देवी के शयन के समय की जाती है। आरती के नाम और ज्वाला देवी मंदिर का समय इस प्रकार हैं:-
|
गर्मी |
सर्दी |
मंदिर खुलने का समय |
5:00 AM |
6:00 AM |
मंगल आरती |
5:00 – 6:00 AM |
6:00 – 7:00 AM |
भोग आरती |
11:30 – 12:30 AM |
11:30 – 12:30 AM |
संध्या आरती |
7:00 – 8:00 PM |
6:00 – 7:00 PM |
शय्यां आरती |
9:30 – 10:00 PM |
8:30 – 9:00 PM |
मंदिर बंद होने का समय |
10:00 PM |
9:00 PM |
हालाँकि, सोने से पहले ज्वाला जी में की जाने वाली शय्या आरती अद्वितीय है। आरती के समय देवी के शयनकक्ष को भव्य पोशाकों और आभूषणों से सजाया जाता है। इसका पहला भाग देवी के मुख्य मंदिर में किया जाता है और दूसरा भाग “सेजाभवन” में किया जाता है, श्री शकराचार्य द्वारा ‘सोंदर्य लहरी’ के श्लोकों का पाठ किया जाता है।