माँ चामुण्डा देवी चालीसा
माँ चामुण्डा देवी चालीसा
माँ चामुण्डा देवी चालीसा में माँ चामुण्डा की स्तुति की गई है। चामुण्डा देवी शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। वर्तमान में उत्तर भारत की नौ देवियों में चामुण्डा देवी का दुसरा दर्शन होता है वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं। यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।
चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे।
माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दूर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यो का राज था। उनके द्वारा देवताओं को युद्ध में परास्त कर दिया गया जिसके फलस्वरूप देवताओं ने देवी दूर्गा कि आराधना की और देवी दूर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यो से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात माता दुर्गा ने दो रूप धारण किये एक माता महाकाली का और दूसरा माता अम्बे का। माता महाकाली जग में विचरने लगी और माता अम्बे हिमालय में रहने लगी। तभी वहाँ चण्ड और मुण्ड आए वहाँ। देखकर देवी अम्बे को मोहित हुए और कहा दैत्यराज से आप तीनों लोको के राजा है। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है। यह वचन सुन कर शुम्भ ने अपना एक दूत माता अम्बे के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ तीनो लोको के राजा है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं। यह सुन दूत माता अम्बे के पास गया और शुमभ द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ बलशाली है परन्तु मैं एक प्रण ले चुकी हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी। यह सारी बाते दूत ने शुम्भ को बताई तो वह माता के वचन सुन क्रोधित हो गया। तभी उसने द्रुमलोचन सेनापति को सेना लेकर माता के पास उन्हे लाने भेजा। जब उसके सेनापति ने माता को कहा कि हमारे साथ चलो हमारे स्वामी के पास नहीं तो तुम्हारे गर्व का नाश कर दूंगा। माता के बिना युद्ध किये जाने से मना किया तो उन्होंने मैया पर कई अस्त्र शस्त्र बरसाए पर माता को कोई हानि नहीं पहुंचा सके मैया ने भी बदले कई तीर बरसाए सेना पर और उनके सिंह ने भी कई असुरों का संहार कर दिया। अपनी सेना का यूँ संहार का सुनकर शुम्भ को क्रोध आया और चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा,रक्तबीज के साथ और कहा कि उसके सिंह को मारकर माता को जीवित या मृत हमारे सामने लाओ। चण्ड और मुण्ड माता के पास गये और उन्हे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना महाकाली का रूप धारण कर लिया और असुरो के शीश काटकर अपनी मुण्डो की माला में परोए और सभी असुरी सेना के टुकड़े टुकड़े कर दिये। फिर जब माता महाकाली माता अम्बे के पास लौटी तो उन्होंने कहा कि आज से चामुंडा नाम तेरा हुआ विख्यात और घर घर में तेरे नाम का जाप होगा ।
माँ चामुण्डा देवी चालीसा भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। माँ चामुण्डा देवी चालीसा का पाठ करने से भक्तों को धन-धान्य, सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। कहते हैं मां के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर सच्ची भक्ति से यदि कोई भक्त माँ चामुण्डा देवी चालीसा का पाठ करता है तो उस पर मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। मां की कृपा उसके पूरे कुल पर होती है। उसके चेहरे पर खुशी और संतोष नजर आता है। वो सफलता के पथ पर आगे बढ़ता है।
॥ दोहा ॥
नीलवरण माँ कालिका रहती सदा प्रचंड।
दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुष्ट को दंड॥
मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत।
मेरी भी पीड़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥
॥ चौपाई ॥
नमस्कार चामुंडा माता। तीनो लोक मई मई विख्याता॥
हिमाल्या मई पवितरा धाम है । महाशक्ति तुमको प्रणाम है॥
मार्कंडिए ऋषि ने धीयया । कैसे प्रगती भेद बताया॥
सूभ निसुभ दो डेतिए बलसाली । तीनो लोक जो कर दिए खाली॥
वायु अग्नि याँ कुबेर संग । सूर्या चंद्रा वरुण हुए तंग॥
अपमानित चर्नो मई आए । गिरिराज हिमआलये को लाए॥
भद्रा-रॉंद्र्रा निट्टया धीयया । चेतन शक्ति करके बुलाया॥
क्रोधित होकर काली आई । जिसने अपनी लीला दिखाई॥
चंदड़ मूंदड़ ओर सुंभ पतए । कामुक वेरी लड़ने आए॥
पहले सुग्गृीव दूत को मारा । भगा चंदड़ भी मारा मारा॥
अरबो सैनिक लेकर आया । द्रहूँ लॉकंगन क्रोध दिखाया॥
जैसे ही दुस्त ललकारा । हा उ सबद्ड गुंजा के मार॥
सेना ने मचाई भगदड़ । फादा सिंग ने आया जो बाद॥
हत्टिया करने चंदड़-मूंदड़ आए । मदिरा पीकेर के घुर्रई॥
चतुरंगी सेना संग लाए । उचे उचे सीविएर गिराई॥
तुमने क्रोधित रूप निकाला । प्रगती डाल गले मूंद माला॥
चर्म की सॅडी चीते वाली । हड्डी ढ़ाचा था बलसाली॥
विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख सृष्टि घबराई॥
चंदड़ मूंदड़ ने चकरा चलाया । ले तलवार हू साबद गूंजाया॥
पपियो का कर दिया निस्तरा । चंदड़ मूंदड़ दोनो को मार॥
हाथ मई मस्तक ले मुस्काई । पापी सेना फिर घबराई॥
सरस्वती मा तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहर॥
चंदड़ मूंदड़ की मिरतट्यु सुनकर । कालक मौर्या आए रात पर॥
अरब खराब युध के पाठ पर । झोक दिए सब चामुंडा पर॥
उगर्र चंडिका प्रगती आकर । गीडदीयो की वाडी भरकर॥
काली ख़टवांग घुसो से मारा । ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा॥
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । मा वेश्दवी कक्करा घुमाया॥
कार्तिके के शक्ति आई । नार्सिंघई दित्तियो पे छाई॥
चुन चुन सिंग सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया॥
रक्टतबीज माया फेलाई । शक्ति उसने नई दिखाई॥
रक्त्त गिरा जब धरती ऊपर । नया डेतिए प्रगता था वही पर॥
चाँदी मा अब शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया॥
सूभ निसुभ अब डोडे आए । सततर सेना भरकर लाए॥
वज्रपात संग सूल चलाया । सभी देवता कुछ घबराई॥
ललकारा फिर घुसा मारा । ले त्रिशूल किया निस्तरा॥
सुभ निसुभ धरती पर सोए । डेतिए सभी देखकर रोए॥
कहमुंडा मा धृम बचाया । अपना शुभ मंदिर बनवाया॥
सभी देवता आके मानते । हनुमत भेराव चवर दुलते॥
आसवीं चेट नवराततरे अओ । धवजा नारियल भेंट चाड़ौ॥
वांडर नदी सनन करऔ । चामुंडा मा तुमको पियौ॥
॥ दोहा ॥
शरणागत को शक्ति दो हे जग की आधार।
‘ओम’ ये नैया डोलती कर दो भाव से पार॥