माता बगलामुखी कवच

माता बगलामुखी कवच

माता बगलामुखी कवच

श्री बगलामुखी कवच में माँ बगलामुखी की स्तुति की गई है। माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग है वो इन्हीं की वजह से है। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है। ये भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है इनकी आराधना के पूर्व हरिद्रा गणपती की आराधना अवश्य करनी चाहिये। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे, तब भगवान शिव ने कहा: शक्ति रूप के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं।

तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं। उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थम गया।

मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में देवी शक्ति का देवी बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था। त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका।

सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

बगलामुखी कवच पाठ कई मायनों में बहुत फायदेमंद होगा क्योंकि इससे मनुष्य के जीवन से बुरी आत्माओं को दूर किया जा सकता है और उन्हें शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद मिलेगी। सफलता के रास्ते में आने वाली समस्याएं भी दूर हो जाती हैं और सफलता प्राप्त होती है। बगलामुखी माता एक स्तंभन देवी हैं और कहा जाता है कि इसमें सभी ब्राह्मणों की शक्ति समाहित होती है, इस कवच को पढ़ने से भक्त के जीवन की हर बाधा समाप्त हो जाती है और शत्रु के शत्रुओं का नाश होता है और साथ ही बुरी शक्तियों का भी नाश होता है।

॥ अथ बगलामुखी कवचं प्रारभ्यते ॥

श्रुत्वा च बगला पूजां  स्तोत्रं  चापि महेश्वर।

इदानीं  श्रोतुमिच्छामि  कवचं  वद मे प्रभो।

वैरिनाशकरं   दिव्यं  सर्वाऽशुभ विनाशकम्।

शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:ख-नाशनम्॥

॥ श्री भैरव उवाच ॥

कवच श्रृणु  वक्ष्यामि  भैरवि।  प्राणवल्लभम्।

पठित्वा-धारयित्वा तु  त्रैलोक्ये विजयी भवेत्॥

विनियोग करें : 

ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: अनुष्टुप्छन्द: श्रीबगलामुखी देवता।

ह्लीं बीजम्। ऐं कीलकम्।

पुरुषार्थचतुष्टयसिद्धये जपे विनियोग:॥

॥ अथ कवचम् ॥

शिरो मे बागला पातु ह्रदयैकक्षरी परा।

ॐ ह्रीं ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी॥

गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी।

वैरि जिह्राधरा पातु कण्ठं मे बगलामुखी॥

उदरं नाभिदेंश च पातु नित्यं परात्परा।

परात्परतरा पातु मम गुह्रं सुरेश्वरी

हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे।

विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसंकटे॥

पीताम्बरधरा पातु सर्वांगं शिवंनर्तकी।

श्रीविद्या समयं पातु मातंगी पूरिता शिवा॥

पातु पुत्रीं सूतञचैव कलत्रं कलिका मम।

पातु नित्यं भ्रातरं मे पितरं शूलिनी सदा॥

रंध्रं हि बगलादेव्या: कवचं सन्मुखोदितम्।

न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि प्रदायकम्॥

पठनाद्धारणादस्य पूजनादवांछितं लभेत्।

इंद कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीय॥

पिबन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा:।

वश्ये चाकर्षणे चैव मारणे मोहने तथा॥

महाभये विपतौ च पठेद्वरा पाठयेतु य:।

तस्य सर्वार्थसिद्धि:। स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति॥