माता ब्रह्माचारिणी आरती
माता ब्रह्माचारिणी आरती
माता ब्रह्माचारिणी आरती में माँ ब्रह्माचारिणी की स्तुति की गई है। मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप को ‘ब्रह्मचारिणी’ कहा जाता है। माता ब्रह्माचारिणी के नाम से ही उनकी शक्तियों की महिमा का पता चलता है। ब्रह्म का अर्थ ‘तपस्या’ होता है, और चारिणी का अर्थ ‘आचरण करने वाली’। अर्थात तप का आचरण करने वाली शक्ति को हम नमन करते हैं। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया।
इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।
॥ माता ब्रह्माचारिणी आरती ॥
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता ।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो ।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा ।
जिसको जपे सकल संसारा ।
जय गायत्री वेद की माता ।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता ।
कमी कोई रहने न पाए ।
कोई भी दुख सहने न पाए ।
उसकी विरति रहे ठिकाने ।
जो तेरी महिमा को जाने ।
रुद्राक्ष की माला ले कर ।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।
आलस छोड़ करे गुणगाना ।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना ।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम ।
पूर्ण करो सब मेरे काम ।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी ।
रखना लाज मेरी महतारी ।