नैना देवी

नैना देवी

नैना देवी

श्री नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित एक भव्य मंदिर है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सती की आंखें गिरी थीं और बाद में देवी की स्मृति में यहां एक मंदिर बनाया गया था। ‘नैना’ शब्द का अर्थ ‘आँखें’ है, इसलिए देवी को नैना देवी के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवी यात्रा मे नैना देवी का छठवां दर्शन होता है। वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं।

नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 से जुड़ा हुआ है। इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनो से भी जा सकते है। यह समुद्र तल से 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़्डलखटोले का प्रबंध किया गया है।

देवी की उत्पत्ति कथा

दुर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरो की सेना विजयी हुई। असुरो का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचरण करने लगे। तब पराजित देवता ब्रहमा जी को आगे कर के उस स्थान पर गये जहां शिवजी, भगवान विष्णु के पास गए। सारी कथा कह सुनाई। यह सुनकर भगवान विष्णु, शिवजी ने बड़ा क्रोध किया उस क्रोध से विष्णु, शिवजी के शरीर से एक एक तेज उत्पन्न हुआ। भगवान शंकर के तेज से उस देवी का मुख, विष्णु के तेज से उस देवी की वायें, ब्रहमा के तेज से चरण तथा यमराज के तेज से बाल, इन्द्र के तेज से कटि प्रदेश तथा अन्य देवता के तेज से उस देवी का शरीर बना। फिर हिमालय ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टो का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मै तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।

पौराणिक सती कथा

नैना देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमे उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नही किया क्योंकि वह भगवान शिव को अपने बराबर का नही समझते थे। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गयी। यज्ञ स्‍थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया गया जिसे माता सती सहन न कर सकीं और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और माता सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली, नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से माता बृजेश्वरी, ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से माता ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण माता मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण माता भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण माता शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, असम में कोख गिरने से माता कामाख्या देवी, चरणों के कुछ अंश गिरने के कारण माता चिंतपूर्णी आदि शक्ति पीठ बन गए। मान्यता है कि नैना देवी मे माता सती के नेत्र गिरे थे।

दर्शन

नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी की कृपा प्राप्त करते है। माता को भोग के रूप में छप्पन प्रकार कि वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी को यहा पर भव्य व आकषर्क मेले का आयोजन किया जाता है।

मंदिर कैसे पहुंचें: नैना देवी राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा चंडीगढ़ है जो लगभग 100 कि.मी दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन आनंदपुर साहिब में है और वहां से दूरी लगभग 30 किमी है।

प्रशासन: मंदिर प्रशासन मंदिर ट्रस्ट के अधीन है।

आधिकारिक वेबसाइटhttps://srinainadevi.com/

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