धनतेरस कथा

धनतेरस कथा

धनतेरस कथा

धनतेरस कथा: एक बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक में भ्रमण कर रहे थे। भगवान विष्णु ने एक स्थान पर माता लक्ष्मी को रोका और कहा कि वह दक्षिण दिशा में जा रहे हैं, जब तक वे लौटकर नहीं आते हैं तब तक आप यहीं पर रहें। ऐसा कहकर भगवान विष्णु वहां से प्रस्थान कर गए। कुछ देर के बाद माता लक्ष्मी के मन में जिज्ञासा हुई कि श्री हरि विष्णु दक्षिण में क्यों गए हैं?

माता लक्ष्मी वहां से उस दिशा में चल दीं, जिस ओर भगवान विष्णु गए थे। रास्ते में एक खेत में सरसों के पीले फूल देखकर वह अति प्रसन्न हुईं। उन्होंने उससे अपना श्रृंगार किया और आगे एक और गन्ने के खेत से गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। तभी भगवान विष्णु वहां आ गए। माता लक्ष्मी को वहां देख कर वे नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि आपने किसान के खेत से चोरी की है और उनकी भी बात नहीं मानी है। इस वजह से आपको अब बारह साल तक किसान की सेवा करनी होगी। इसके बाद भगवान विष्णु वहां से चले गए।

माता लक्ष्मी बारह वर्षों तक उस किसान के यहां रहीं, वह बहुत सम्पन्न हो गया था। उसके पास सोने, चांदी, अन्न, आदि की कमी नहीं थी। बारह वर्षोंके बाद भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लेने आए, तो किसान ने उनको भेजने से मना कर दिया। तब भगवान विष्णु ने कहा कि उनके श्राप के कारण माता लक्ष्मी ने बारह साल तक तुम्हारी सेवा की है, अब ये यहां नहीं रह सकती हैं, लेकिन किसान फिर भी नहीं माना।

तब माता लक्ष्मी ने कहा कि कल त्रयोदशी तिथि है, इस दिन पूरे घर की साफ-सफाई करना, रात्रि के समय कलश में रुपये-पैसे रखकर विधि विधान से मेरी पूजा करना। मैं उस कलश में वास करूंगी, लेकिन तुम मुझे देख नहीं पाओगे। इस दिन पूजा करने से पूरे वर्ष मैं तुम्हारे घर रहूंगी। उसने माता लक्ष्मी की बात मानकर त्रयोदशी को पूजा किया, जिससे वह पहले से ज्यादा धन-धान्य से संपन्न हो गया। इस कारण से हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को माता लक्ष्मी की पूजा और धनतेरस कथा होने लगी।