श्री बगलामुखी चालीसा

श्री बगलामुखी चालीसा

श्री बगलामुखी चालीसा

श्री बगलामुखी चालीसा में माँ बगलामुखी की स्तुति की गई है। माता बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी तरंग है वो इन्हीं की वजह से है। यह भगवती पार्वती का उग्र स्वरूप है। ये भोग और मोक्ष दोनों प्रदान करने वाली देवी है इनकी आराधना के पूर्व हरिद्रा गणपती की आराधना अवश्य करनी चाहिये। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे, तब भगवान शिव ने कहा: शक्ति रूप के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएं।

तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से देवी शक्ति प्रकट हुईं। उनकी साधना से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीड़ा करती महापीतांबरा स्वरूप देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज से ब्रह्मांडीय तूफान थम गया।

मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में देवी शक्ति का देवी बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ था। त्रैलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रुक सका।

सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

श्री बगलामुखी चालीसा पाठ भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। श्री बगलामुखी चालीसा का पाठ करने से भक्तों को धन-धान्य, सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है। कहते हैं मां के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर सच्ची भक्ति से यदि कोई भक्त श्री बगलामुखी चालीसा का पाठ करता है तो उस पर मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।

दोहा

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥

चौपाई

जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥१॥
बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥२॥
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ॥३॥
पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥४॥

तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ॥५॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥६॥
आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ॥७॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन । सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥८॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । वेद पुराण संत अस भाखै ॥९॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । जाके किये होत दुख-नाशा ॥१०॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै ॥११॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥१२॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥१३॥
धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ॥१४॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥१५॥
मातु भगति तब सब सुख खानी । करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥१६॥

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥१७॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥१८॥
पूजनांत में हवन करावै । सा नर मनवांछित फल पावै ॥१९॥
सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सचराचर होई ॥२०॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥२१॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥२२॥
फूल अशोक हवन जो करई । ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥२३॥
फल सेमर का होम करीजै । निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥२४॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ॥२५॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै । ताको सकल बंध कट जावै ॥२६॥
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं । बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥२७॥
एक मास निशि जो कर जापा । तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥२८॥

घर की शुद्ध भूमि जहं होई । साध्का जाप करै तहं सोई ॥२९॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै । यामै नहिं कदु संशय लावै ॥३०॥
अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ॥३१॥
दस सहस्र जप करै जो कोई । सक काज तेहि कर सिधि होई ॥३२॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयशविस्तारा ॥३३॥
जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥३४॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा । वाको पूरन हो सब कामा ॥३५॥
नव दिन जाप करे जो कोई । व्याधि रहित ताकर तन होई ॥३६॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी । पावै पुत्रादिक फल चारी ॥३७॥
प्रातः सायं अरु मध्याना । धरे ध्यान होवैकल्याना ॥३८॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी । नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥३९॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥४०॥

दोहा

सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम ॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥